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‘काश’

Mujhe bhi kuch kehna hai
Mujhe bhi kuch kehna hai
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‘काश’ मिली होती आजादी हमें ………….,
विषाक्त सामाजिक कुप्रथा से ……..,
राजनीतिक कुरीतियों से …………..
धर्म के मक्कार ठेकेदारों से …………..,
भ्रूण हत्याओं के ,हत्यारों से ……..,
मासूम के बलात्कारों से ……,
भूख ,गरीबी ,महंगाई से ………,
आतंकवाद के आतंक से ………..,
तो शायद हम आज आजाद होतें ………….
वरना गुलाम पहले भी थे …
आज भी हैं ……………….,
फ़र्क इतना हैं के पहले …
फिरंगियों ने कोड़े बरसाए……..,
आज अपनों ने खंजर भोंके हैं ………….
लहू तो कल भी बहा था ……………..,
लहूलुहान तो आज भी हम हैं ……….,
फिर कैसे कहें हम आजाद हैं ……………,
काश मिली होती आजादी हमें …………,
गर्व से हम भी कहते हम आजाद हैं ……………

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