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कहाँ थे हम ? क्यूँ थे हम ? क्या थे हम ? – २
इस सोच की राख को कुरेदने का वक़्त आया है ,
आईना देखने और दिखाने का वक़्त आया है I
शीशे में श़क्ल नहीं , रूह को तलाशना है , – २
वादे बहुत हो चुके खुद से , अब निभाने का वक़्त आया है ,
आईना देखने और दिखाने का वक़्त आया है I
ज़िन्दगी यूँ ही जीए जा रहे थे , या मर ही चुके थे हम , – २
ज़िन्दगी जिंदा है , इस एहसास को जीने का वक़्त आया है ,
आईना देखने और दिखाने का वक़्त आया है I
अब तक भीड़ का एक भेड़ ही तो थे हम , – २
आज इंसान बन , कुछ कर गुज़रने का वक़्त आया है ,
आईना देखने और दिखाने का वक़्त आया है I
जीत की क्या बात करें ? – २
अंतरिक्ष को कदमों से रौंदा ,
समंदर की गहराई को नापा ,
हिमालय की चोटी को चूमा ,
इसी धरती पे , रावण को मारा ,
फिर हारने का आज डर क्यूँ ? – २
इस डर को डराने का वक़्त आया है ,
आज तो हद से गुज़र जाने का वक़्त आया है ,
आईना देखने और दिखाने का वक़्त आया है I
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