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“पथिक” ,अब तो तूं हैं चल पड़ा ….

Mujhe bhi kuch kehna hai
Mujhe bhi kuch kehna hai
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1844_b[1]
तंग गलियां ,,,,
घुटी सोच ,,,,
राहें अवरूद्ध थी ,,,,,,,
इक ऊँगली को पकड़ ,,,,,रास्ता निकल पड़ा ………….
पथिक ,अब तो तूं चल पड़ा …
सर पे गठरी बांध ,,,,,,,,
सैकड़ों हाथों को थाम ,,,,,,,,,
लिए मन में एक तूफान ,,,,,,,
मानवता का हैं आज पाठ पढ़ा ,,,,,
पथिक ,अब तो तूं चल पड़ा ……………
अब न रुकेंगे ,,,,,,
अब न झुकेंगे ,,,,,
चलने को मिल गया हैं राह बड़ा ,,,,,
मंजिल दूर सही ,,,,क्या करना ,,,,?
पलट के देख ,एक नहीं ,दो नहीं ,पूरा कारवां हैं खड़ा ,,
पथिक ,अब तो तूं हैं चल पड़ा …………….
हैं इतिहास को बदलना ,,
ना टूटना हैं ना बिखरना ,,,,,,
अब तो संग -संग हैं चलना ,, 0AD637DB1DFE441B9CEDD78A1D9EFC44[1]
कोहरे से काफिला हैं निकल पड़ा ,,,
पथिक ,अब तो तू हैं चल पड़ा ………..

anna-andolan-toi-new[1] सिक्के की खनक पे ,,
थिरकने वाले ये कदम नहीं ,,,,,,,,
बिकने वाले जुलुस का ,,,
हिस्सा अब हम नहीं ,,,,,
आज दीवानों की रैली निकली हैं यारों,,,,,,,,,,,
रोक सके कोई ,किसी में इतना दम नहीं …………..

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