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स्वयं को पहचान !!

Mujhe bhi kuch kehna hai
Mujhe bhi kuch kehna hai
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” मैंने अपनी जिंदिगी में औरतों की पीड़ा और दर्द की पराकाष्ठा को देखा हैं , उसे कभी भी हालात से हारते नहीं देखा इसलिए आज की पैसे और प्रसिद्धि के लिए उसका भटकाव समझ नहीं आता . कविता और कहानी मन के नीजी भाव होते हैं , प्रार्थना और क्षमा के साथ इसे प्रस्तुत कर रही हूँ , कोई अन्यथा न लें . ”
dp9[1]
तू चंडी ,तू दुर्गा ,तू काली ,
तू सृष्टि को रचने वाली हैं
कहाँ हैं तेरे अस्त्र -शस्त्र,,,?
कहाँ तू उसे भूल आई हैं ?
जिसको तूने जनम दिया ,
भला उससे क्यों घबराई हैं

woman-back[1] कौन सी बेखुदी ,कौन सा नशा
कि लज्जा ही भूल आई हैं ,,,,,
रति का ये कैसा रूप हैं अपनाया ?
मतभूल तू ही सती,सीता ,सावित्री हैं ,
दुःख और दर्द तेरी ताकत हैं नारी ,
नारी तू दर्द ,दर्द तेरा हमसाया हैं ,
तू ….सबला ……..तू ….सक्षम .
फिर मन को क्यों भरमाया हैं ?
तेरी अस्मिता पर उठे सवाल ,
ऐसा वक़्त ही क्यों आया हैं ?
पीड़ा सहकर ही तू जननी बनी ,
तभी तो सबने कहा ,तू धरा हैं .
मत भूल इसी धरती पर ,
अंबर का अस्तित्वा खड़ा हैं ,
वरना कौन शून्य को निहारता ?
हर किसी ने कदम ,तुझपे ही टिकाया हैं

maaDurga-2[1]

स्वयं को पहचान,बदल अपनी किस्मत ,
कोई क्या लिखे तुझपे ,किसकी इतनी हिम्मत ?
किसमे इतना दम कि तेरी तक़दीर बदल सके ,
हैं वो तूं ,कि इतिहास कि तारीख बदल दे ,
हे ,,,,शक्तिरूपा ,अपनी शक्ति को पहचान ,
खुद तेरे ही हाथों हैं ,,तेरा मान और सम्मान .

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