Mujhe bhi kuch kehna hai
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फिर आज दिल क्यों रोया ….?
उन लम्हों को ,उन यादों को ..
सीने से भींच कर क्यों लगाया ?
बंद मुट्ठी से फिसले रेत को
बूँद -२ आंसुवों से क्यों भिगोया ?
फिर आज दिल क्यूँ रोया ?
किससे पूंछु ?क्या कहूँ किसको ?
क्यों कर मैंने तुमको भुलाया ?
जो दिया था जख्म तूने मुझको ,
बस वही सौगात तो है लौटाया .
फिर आज दिल क्यूँ रोया ?
कोई तो ये पैगाम दे दो उनको ,
जिन्होंने दोस्त बन दुश्मनी निभाया ,
दुश्मनों की यूँ भी क्या कमी थी दोस्त ,
कि तुम्हें भी इसी कतार में पाया ,
फिर आज दिल क्यूँ रोया ?
ताक रही हूँ सुबह से उस शून्य को ,
जिसे जमीं ने बिछकर आसमां बनाया
निगोड़े उसी ने कभी ,बिजली गिराई,
कभी सैलाब में सब कुछ डुबोया ,
फिर आज दिल क्यूँ रोया ..?
फिर आज दिल क्यूँ रोया ?
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