Mujhe bhi kuch kehna hai
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मैं हूँ कौन ?
एक शक्ल एक जान
हाँ , मेरी है एक पहचान
फिर दिल के दरवाज़े पर ये दस्तक कैसी ?
मानो कोई कह रहा हो
अन्दर कौन ?
अन्दर कौन ?
भटकाव है ज़िन्दगी बस एक भाव है ज़िन्दगी
हम सब है मेहमान
क्यूँ भूल रहा इंसान
अरे मूरख खुद को पहचान
तू कौन ?
तू कौन ?
“स्व” में उलझी अर्थ ढूँढती स्व का
अहम् है या आन
करूँ किस किस की पहचान
भरम में उलझा ये मन
सवाल फिर वही …
मैं कौन ?
मैं कौन ?
मिटटी का है तन, बस दो गज़ कफ़न
ज़रुरत बस इतनी
फिर क्यूँ इतना गर्जन
हर तरफ है पागलपन
इंसानियत क्यूँ है आज मौन
मैं हूँ कौन ?
मैं हूँ कौन ?
ढूंढना ही है कुछ , तो खुद को ढूंढ ले
धरती का सीना क्यूँ चीरे
मन के सागर को फिर से मथ ले
कोई सच्चा मोती शायद हाथ आ जाये
ए मानव तू स्व का अर्थ समझ जाये …|||
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