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हर मुलाकात का अंजाम जुदाई क्यूँ है ….???????

Mujhe bhi kuch kehna hai
Mujhe bhi kuch kehna hai
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पांच साल पूर्व जिस स्कूल में कुछ दिन शिक्षिका बनने का सौभाग्य मुझे मिला था वहीँ के एक कुशल आर्ट के शिक्षक की कैंसर से पीड़ित हो मृत्यु सैय्या पर पड़े होने की बात जब सुनी तो मन दुःख से भर आया
और कई सवाल मन में कौंध उठा !!

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ज़िन्दगी क्या है ?

ज़िन्दगी ऐसा क्यों है..?
ज़िन्दगी आखिर चाहती क्या है..?
खाली मुट्ठी में आसमां को बंद करने की चाहत जहाँ हमें हर हद को पार करने की ताकत देती है वहीँ जब मुट्ठी भर जाए तो फिर रेत की तरह फिसलते वक़्त को पकड़ने की छटपटाहट भी चैन नहीं लेने देती है और फिर हम भागते हैं , भागते ही जाते हैं बिना ये देखे की हमारे इस दौड़ में हम किसे पीछे छोड़ रहे हैं , कौन हमारे साथ दौड़ते-दौड़ते अपना दम तोड़ रहा हैं , एक लम्बे अन्तराल की खाई में हर रिश्ता गुम होता जा रहा है , हम सब सिमटते जा रहे हैं इस हद तक की हम बौना होते जा रहे हैं..हमारा अस्तित्व मिटते जा रहा है ! सालों -साल हम अपनों से मिल नहीं पाते, अपनों की खबर लिए बिना जीये जा रहे हैं |
आखिर हम कहाँ आ गए हैं ?
दस साल पहले किसी विवाह समारोह में मैं अपने नाते रिश्तेदारों से मिली थी , ख़ुशी का माहौल , हसी ठिठोली , खूबसूरत पल की यादें समेटे जब जुदा हुए तो ये सोचा भी न था की इनमें से कई को अब दुबारा देख भी नहीं पाऊँगी | गुज़रते वक़्त के साथ कईयों के गुजरने की बस कहीं कहीं से खबर मिलती रही और हम बस एक आह भर कर फिर रेस में दौड़ पड़े | अभी कुछ दिन पहले दिल दहलाने वाली एक खबर आई की रिश्ते का एक भाई मारा गया | चूँकि रिश्ता खून का था इसलिए नाखून काटा और सर धो के नहाई बस रिश्ते का क़र्ज़ उतर गया लेकिन अन्दर तक कुछ दरक सा गया | क्या हर रिश्ते की आयु सिर्फ यहीं तक है..? सालों की दूरी क्या दीमक की तरह हमारे रिश्ते नाते को चाट नहीं चुकी है..? एक वक़्त पहले भी था जिसे मैंने भी जीया है जब गाँव के काका काकी , मामा मामी से भी एक मजबूत रिश्ता हुआ करता था और आज माँ बाप से भी एक दूरी कायम हो चुकी है | वक़्त मिला तो फ़ोन किया वरना कई बहाने …………..| क्या हमारी संवेदनशीलता मर चुकी है..या हम इस कदर मजबूर हो चुके हैं अपनी जरूरतों की खातिर की भागते वक़्त के पीछे भागना ही हमारी किस्मत बन चुकी है ताकि हम अपने बच्चो के लिए उसकी ज़िन्दगी की बेहतरी के लिए कुछ कर सके और खुद को इस समाज में इज्ज़त से जीने के काबिल बना सके |
एक बार फिर पिछले महीने विवाह समारोह से भरपूर ज़िन्दगी जीते हुए ,मीठी सी याद दिल में समाये हुए जब हम विदा हुए और अपनी धरती को छोड़ ऊपर उठ कर आसमा की ओर चले तो दिल भर आया की पता नहीं अब फिर इनमें से किस किस से कब मिलेंगे ? अब तो हर जुदाई एक दर्द जे जाती हैं रिश्तों के बिछइऩे का दर्द ……….|

सब कुछ पा कर भी खोने का एहसास क्यूँ …..?
भटकते बचपन और यौवन की गलियों से निकल
यादों में सही , बातों में सही है आस पास तू ….
न भूली न भूलना चाहती , वतन के मिटटी की खुशबु ,
उसी मिटटी में दफ़न होने की है आज भी जुस्तजू
सब कुछ पा कर भी है खोने का एहसास क्यूँ ……??

साधना ठाकुर

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