Mujhe bhi kuch kehna hai
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रात भर जागती रही ,
बिसुरती ,कराहती रही ,
दीये को जलाती-बुझाती रही ,
अँधेरे से उजाला मांगती रही ,
लो ,सुबह तो हो गई ,,,,,,,,,,,
पर अब क्या करूँ……….?
कहाँ जाऊं …?
दिन के धूप में सब दिखता है ,
आँखों की नमीं ,उसमे छिपा दर्द ,
चेहरे पर छाई उदासी की लकीरें ,
बेमकसद की ज़िन्दगी ,
होठों की फीकीं हंसी ,
उजाले में सब चमकता है ,
मन फिर अँधेरा कोना ढूँढता है ,
तो फिर क्या करूँ ………..?
फिर से , रात का इंतज़ार ……….?
कब से भटकती रही हूँ
आहें , भर भर सिसकती रही हूँ ,
ज़िन्दगी तुझे ढूंढते ढूंढते थक सी गयी हूँ
कहने को तो उम्र कटने को है आई ,
पर ज़िन्दगी तुझे जी कहाँ पाई ….???
ज़िन्दगी तुझे जी कहाँ पाई ….?????
या रब भटकती रही तुझे पाने को दरबदर इधर उधर ,
भूख से बिलखती , उघडी जिस्म नज़र क्यूँ न आई …..
ज़िन्दगी तुझे जी क्यूँ न पाई ….?????
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