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हो……..सुर्ख लाल II

Mujhe bhi kuch kehna hai
Mujhe bhi kuch kehna hai
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“वेलेंटाइन डे”,,प्यार करने का एक खास दिन .फूल ,कार्ड्स ,महंगे गिफ्ट के आदान प्रदान का दिन ,,यानी प्यार इन सब का मोहताज़ …..तो क्या यही है आज के प्यार का चर्चित और विकसित रूप ..?या प्यार के और भी है कई अनोखे रूप जिसका सम्बन्ध आत्मा से है, वास्तविकता से है ..दिल की एक आवाज़ को एक छोटी सी कविता में पिरोने की कोशिश की है ,कृपया अवश्य पढ़े …

 

अलग-अलग दिशा के राही
मिले आके इक छोर … I
बंधकर परिणय-सूत्र में
चल पड़े नए पथ की ओर I
पल पल जोड़ते और बुनते
रिश्ते-नाते की हर डोर

चलते रहे यूँही पथ पर
बीते, कितनी शामें, कितने भोर … I
जीवन की आपा-धापी में,
लगी थी आगे बढ़ने की होड़,
बीता वक़्त न आता है, न आयेगा
मची थी कानो में यही शोर … I
तपते जीवन की दोपहरी में
आ गयी संध्या दबे पांव,
जैसे कोई चोर …. I

तब इक दिन प्रिय ने कहा
सुनो आज है दिन कुछ ख़ास
हर तरफ है प्यार का उल्लास
सब बैठे है देखो कितने पास-पास
क्या यही है प्यार की पारिभाष … ???

 

“प्रिय” मैं क्या जानूं दिवस औ मास
मन में बस यही अंतिम अभिलाष
बाबुल के घर से निकली थी डोली
माथे ओड़े चुनरिया लाल ….
जब तुझसे लूँ अंतिम विदा
हो रंग कफ़न का सुर्ख लाल
हो रंग कफ़न का सुर्ख लाल .. I

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